4500 Years Old Civilization: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने राजस्थान के डीग जिले के बहाज गांव में एक ऐसी खोज की है जो देश के प्राचीन इतिहास को एक नया आयाम देने वाली है। यहां हुई खुदाई में 4500 साल पुराने एक विकसित सभ्यता के प्रमाण मिले हैं जो हमारे पूर्वजों की समृद्ध संस्कृति की गवाही देते हैं। जनवरी 2024 में शुरू हुई इस खुदाई ने पुरातत्वविदों को हैरान कर दिया है।
4500 Years Old Civilization सरस्वती नदी का रहस्य खुला-
सबसे रोमांचक खोज यह है कि यहां 23 मीटर गहरा एक प्राचीन नदी चैनल मिला है, जिसे विशेषज्ञ पौराणिक सरस्वती नदी से जोड़कर देख रहे हैं। ऋग्वेद में वर्णित यह नदी सदियों से एक रहस्य बनी हुई थी। ASI के साइट हेड पवन सरस्वत का कहना है कि यह प्राचीन जल प्रणाली शुरुआती मानव बस्तियों का आधार रही होगी और इसने सरस्वती घाटी को मथुरा और ब्रज क्षेत्र से जोड़ा था। इस खोज का मतलब यह है कि हमारे शास्त्रों में वर्णित सरस्वती नदी केवल एक कल्पना नहीं थी, बल्कि वास्तव में एक जीवंत नदी थी जिसके किनारे हजारों साल पहले हमारे पूर्वज रहा करते थे।
4,500-Year-Old Civilisation In Rajasthan Has Mythical River Saraswati Link
The excavation has revealed evidence of five different periods, including the Harappan post-period, Mahabharata period, Mauryan period, Kushan period and Gupta period. pic.twitter.com/kO1TkhHR3r
— India Recap (@indiarecapnews) June 28, 2025
4500 Years Old Civilization 800 से अधिक अमूल्य कलाकृतियां-
इस खुदाई में मिली 800 से अधिक कलाकृतियां हमारे इतिहास का खजाना हैं। इनमें मिट्टी के बर्तन, ब्राह्मी लिपि की सबसे पुरानी मुहरें, तांबे के सिक्के, यज्ञ कुंड, मौर्य कालीन मूर्तियां, भगवान शिव और पार्वती की प्रतिमाएं, और हड्डी से बने औजार शामिल हैं। यह सब चीजें बताती हैं कि यहां कभी एक समृद्ध और विकसित समाज रहा करता था। विशेष रूप से हड्डी के औजार जैसे सुई, कंघी और सांचे भारत में पहली बार इस रूप में मिले हैं। यह दिखाता है कि हमारे पूर्वज कितने कुशल कारीगर थे।
पांच कालखंडों की अनूठी गाथा-
सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां पांच अलग-अलग कालखंडों के प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा उत्तर काल, महाभारत काल, मौर्य काल, कुषाण काल और गुप्त काल के अवशेष एक ही जगह मिलना इस बात का प्रमाण है कि यह स्थान हजारों वर्षों तक निरंतर मानव सभ्यता का केंद्र रहा है।
महाभारत कालीन परतों में मिले मिट्टी के बर्तन और हवन कुंड विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। इनमें आयताकार और गोलाकार चित्रकारी और अग्नि अनुष्ठानों के अवशेष मिले हैं। ASI की टीम का कहना है कि यह मिट्टी के बर्तन महाभारत काल के वस्त्र और बर्तनों के वर्णन से मेल खाते हैं।
राजस्थान की सबसे गहरी खुदाई-
यह खुदाई राजस्थान में अब तक की सबसे गहरी खुदाई है, जो 23 मीटर की गहराई तक पहुंची है। इससे पता चलता है कि यहां कई सभ्यताओं की परतें दबी हुई हैं। 400 ईसा पूर्व की एक मूर्ति मिली है जिसे मौर्यकालीन मातृदेवी का सिर माना जा रहा है। गुप्त स्थापत्य शैली की मिट्टी की दीवारें और खंभे, धातु विज्ञान से संबंधित भट्टियां भी मिली हैं जो तांबे और लोहे के कच्चे माल के उपयोग का संकेत देती हैं। इससे पता चलता है कि यहां के लोग धातु विज्ञान में भी कुशल थे।
धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर-
खुदाई में मिली शिव-पार्वती की टेराकोटा मूर्तियां शक्ति और भक्ति परंपराओं से जुड़ी हुई हैं। 15 से अधिक यज्ञ कुंड मिले हैं जो वैदिक और उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक अनुष्ठानों की पुष्टि करते हैं। शंख की चूड़ियां और अर्ध-कीमती पत्थरों के मनके उस समय की व्यापारिक गतिविधियों और सौंदर्य परंपराओं को दर्शाते हैं।
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वैज्ञानिक जांच जारी-
खुदाई के दौरान मिला एक मानव कंकाल विशेष रूप से दिलचस्प है, जिसे और विस्तृत जांच के लिए इजराइल भेजा गया है। यह हमें उस समय के लोगों की जीवनशैली और स्वास्थ्य के बारे में अधिक जानकारी दे सकता है।
राष्ट्रीय धरोहर बनने की दिशा में-
ASI ने संस्कृति मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है और संभावना है कि इस क्षेत्र को राष्ट्रीय पुरातत्व संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाएगा। यह खोज न केवल राजस्थान बल्कि पूरे उत्तर भारत के प्राचीन इतिहास की समझ को एक नई दिशा देती है। यह खुदाई हमें दिखाती है कि हमारी सभ्यता कितनी पुरानी और समृद्ध है। ब्रज क्षेत्र हजारों साल से धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का केंद्र रहा है, और यह खोज इस बात की पुष्टि करती है।
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