Saudi Pakistan Defense Deal: अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक ऐसा मोड़ आया है, जिसने भारत-सऊदी अरब के बढ़ते रिश्तों पर सवालिया निशान लगा दिया है। सऊदी अरब, जिसे दुनिया तेल का बादशाह कहती है, ने पाकिस्तान के साथ एक ऐसी डिफेंस डील पर दस्तखत किए हैं, जो भारत के लिए चिंता का सबब बन गई है। यह समझौता सिर्फ एक साधारण डिप्लोमैटिक हैंडशेक नहीं, बल्कि एक स्ट्रेटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट है, जो दोनों देशों को मिलिट्री लेवल पर एक-दूसरे का साथी बनाता है।
क्या है स्ट्रेटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट?
इस ऐतिहासिक समझौते को स्ट्रेटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट यानी एसएमडीए के नाम से जाना जा रहा है। इस डील की सबसे अहम बात यह है, कि अगर किसी देश ने पाकिस्तान पर हमला किया, तो सऊदी अरब उसकी मदद के लिए आगे आएगा। वहीं दूसरी तरफ, अगर सऊदी अरब पर कोई खतरा मंडराता है, तो पाकिस्तान अपने न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए तैयार रहेगा। यह पहली बार है, जब सऊदी अरब ने किसी देश के साथ इतने गहरे स्तर का डिफेंस पार्टनरशिप बनाया है।
इस समझौते की सबसे बड़ी खासियत यह है, कि सऊदी अरब और मध्य पूर्व के अधिकांश देशों के पास अपने न्यूक्लियर हथियार नहीं हैं। उनके पास किसी भी तरह के मास डिस्ट्रक्शन वेपन्स का भंडार नहीं है। लेकिन अब पाकिस्तान के जरिए उन्हें न्यूक्लियर पावर का अप्रत्यक्ष समर्थन मिल गया है, जो अमेरिका सहित कई देशों के लिए चिंता की बात है।
भारत के लिए क्यों है यह चिंताजनक?
भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुरानी दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है। दोनों देशों के बीच कई युद्ध हो चुके हैं और सीमा पर तनाव आम बात है। ऐसे में सऊदी अरब का पाकिस्तान के साथ यह गठजोड़ भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। अगर भविष्य में भारत-पाकिस्तान के बीच कोई संघर्ष होता है, तो सऊदी अरब भी पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा हो सकता है। यह सिचुएशन भारत की विदेश नीति के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकती है।
हाल के वर्षों में भारत और सऊदी अरब के बीच रिश्ते अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर थे। व्यापार, ऊर्जा, रक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में दोनों देशों ने काफी प्रगति की थी। सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और भारतीय प्रधानमंत्री के बीच मजबूत बॉन्डिंग देखी गई थी। लेकिन इस नई डील ने उन सभी प्रगति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
भारत की प्रतिक्रिया और डिप्लोमैटिक चिंताएं-
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए सऊदी अरब से स्पष्टीकरण मांगा है। भारत ने सऊदी सरकार को संदेश दिया है, कि वह उम्मीद करता है कि सऊदी अरब सोच-समझकर ही कोई फैसला लेगा। तर्क साफ है, कि दुश्मन देशों का दोस्त हमारा दोस्त कैसे हो सकता है। यह डिप्लोमैटिक भाषा में एक मजबूत संदेश है, जो सऊदी अरब को भारत की नाराजगी बताता है।
भारत के लिए यह स्थिति इसलिए भी नाजुक है, क्योंकि सऊदी अरब से भारत का तेल आयात और आर्थिक जुड़ाव काफी गहरा है। खाड़ी देशों में लाखों भारतीय काम करते हैं और वहां से आने वाला रेमिटेंस भारतीय अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है।
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अमेरिका की पचास साल की मेहनत पर फिरा पानी-
पिछले पांच दशकों से अमेरिका ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है, कि मध्य पूर्व के देशों, खासकर सऊदी अरब के पास न्यूक्लियर हथियार न हों। अमेरिकी डिप्लोमेसी और नीतियों का एक बड़ा उद्देश्य यही रहा है, कि इस क्षेत्र में परमाणु हथियारों का प्रसार न हो। लेकिन इस नई डील के जरिए सऊदी अरब ने बिना खुद न्यूक्लियर पावर बने, पाकिस्तान के परमाणु छत्र का फायदा हासिल कर लिया है। यह अमेरिकी विदेश नीति के लिए एक बड़ा झटका है।
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यह समझौता दिखाता है, कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में गठबंधन और दोस्ती के समीकरण कितनी तेजी से बदल सकते हैं। जो देश कल तक एक-दूसरे से दूर थे, आज वे मिलिट्री पार्टनर बन गए हैं। यह बदलाव न सिर्फ भारत बल्कि पूरे दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व की जियोपॉलिटिक्स को प्रभावित करेगा।