Marine Research
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    Marine Research: भारत ने समुद्री अनुसंधान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। चेन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) ने 'समुद्रयान' प्रोजेक्ट के तहत तीन लोगों को ले जाने में सक्षम पनडुब्बी 'मत्स्य-6000' का सफल परीक्षण किया। यह परीक्षण 27 जनवरी से 12 फरवरी के बीच तमिलनाडु के एल एंड टी हार्बर में किया गया।

    Marine Research अत्याधुनिक तकनीक से लैस 'मत्स्य-6000'-

    NIOT द्वारा विकसित इस अत्याधुनिक पनडुब्बी में एक पायलट सहित तीन लोगों के बैठने की क्षमता है। इसका व्यास मात्र 2.1 मीटर है। यह पनडुब्बी कई विशेषताओं से लैस है, जिसमें डाइविंग के लिए मुख्य बैलास्ट सिस्टम, तीनों दिशाओं में चलने के लिए थ्रस्टर्स, पावर सप्लाई के लिए बैटरी बैंक और बॉयंसी के लिए सिंथेटिक फोम शामिल हैं। सतह पर संचार के लिए इसमें VHF सिस्टम भी लगाया गया है।

    Marine Research सफल परीक्षण का महत्व-

    NIOT के निदेशक बालाजी रामकृष्णन ने बताया कि यह परीक्षण समुद्र की गहराई में मानवयुक्त खोज की दिशा में पहला कदम है। उन्होंने कहा, "जैसा कि कहा जाता है, हजार मील की यात्रा एक कदम से शुरू होती है। हार्बर ट्रायल हमारा वह पहला कदम था। समुद्री अन्वेषण के क्षेत्र में अवसर असीमित हैं।"

    Marine Research परीक्षण की प्रक्रिया-

    दो सप्ताह तक चले इस परीक्षण में दो मीटर की गहराई में मानवरहित और मानवयुक्त परीक्षण किए गए। इस दौरान पनडुब्बी के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं की जांच की गई, जिसमें पावर और कंट्रोल नेटवर्क की मजबूती, वाहन की स्थिरता, मानव सुरक्षा प्रणाली और सीमित दिशाओं में चलने की क्षमता शामिल थी।

    'डीप ओशन मिशन' का हिस्सा-

    'समुद्रयान' पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जो 4,800 करोड़ रुपये के 'डीप ओशन मिशन' का हिस्सा है। इस प्रोजेक्ट के तहत 'मत्स्य-6000' 2026 तक चरणबद्ध तरीके से हिंद महासागर में 6,000 मीटर की गहराई तक जाएगी। 2025 के अंत तक 500 मीटर की गहराई तक के परीक्षण किए जाएंगे।

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    विशेषज्ञों की निगरानी में परीक्षण-

    परीक्षण के दौरान नेविगेशन और पानी के नीचे संचार क्षमताओं की भी जांच की गई। इसमें कई जटिल समुद्र विज्ञान संबंधी सेंसरों का परीक्षण किया गया। इस प्रदर्शन चरण में पांच मानवरहित और पांच मानवयुक्त डाइव शामिल थीं। प्रत्येक मानवयुक्त डाइव को कड़ी जांच के बाद मंजूरी दी गई, जिससे लाइफ सपोर्ट सिस्टम की विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके।

    यह उपलब्धि भारत के लिए एक नए युग की शुरुआत है, जो समुद्री अनुसंधान के क्षेत्र में देश की क्षमताओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। यह न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देगी बल्कि समुद्री संसाधनों के बेहतर उपयोग में भी मददगार साबित होगी।

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