Navratri: जब नवरात्रि का समय आता है, तो हर घर में मंत्रों की गूंज, दीपों की रोशनी और मां दुर्गा को चढ़ाए गए फूलों की सुगंध से माहौल भर जाता है। नौ रातों तक भक्त व्रत रखते हैं, भजन गाते हैं, आरती करते हैं और शक्ति की महिमा में खुद को समर्पित कर देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि नवरात्रि के बारे में कई मिथक और गलतफहमियां भी फैली हुई हैं? ये मिथक अक्सर त्योहार की असली आध्यात्मिक शिक्षा को छुपा देते हैं और लोगों को सिर्फ कड़े नियम-कायदों में बांध देते हैं।
मिथक नंबर 1-
बहुत से लोग समझते हैं, कि नवरात्रि का मतलब बस व्रत रखना है। हां, व्रत जरूरी है, लेकिन यह त्योहार का मुख्य उद्देश्य नहीं है। शास्त्रों के अनुसार, व्रत का मतलब शरीर को भूखा रखना नहीं ,बल्कि उसे शुद्ध करना है ताकि मन में सत्व गुण आ सके। पुराने जमाने में व्रत इसलिए रखा जाता था, ताकि पाचन तंत्र को आराम मिले, शरीर हल्का लगे और दिमाग पूरी तरह से ध्यान और प्रार्थना में लग सके।
असली बात यह है, कि नवरात्रि अनुशासन, आत्म-चिंतन और अपनी भीतरी शक्ति को जगाने का त्योहार है। व्रत तो बस एक तरीका है इसे पाने का। मुख्य चीज है, तपस्या और ध्यान, जो मिलकर हमारे अंदर की दिव्य स्त्री शक्ति को जगाते हैं। इसलिए अगर कोई व्रत नहीं रख सकता, तो भी वह भक्ति और ध्यान के जरिए नवरात्रि का पूरा फायदा उठा सकता है।
मिथक नंबर 2-
सबसे प्रसिद्ध कहानी यह है, कि नवरात्रि मां दुर्गा की महिषासुर पर विजय के लिए मनाई जाती है। यह कहानी सच है और बहुत महत्वपूर्ण भी है, लेकिन नवरात्रि के पीछे सिर्फ यही एक कारण नहीं है। इस त्योहार की कई परतें हैं, जो एक पौराणिक घटना से कहीं ज्यादा गहरी हैं।
कुछ परंपराओं में नवरात्रि भगवान राम की रावण के साथ युद्ध की तैयारी का समय माना जाता है, इसलिए अंतिम दिन विजयादशमी मनाई जाती है। दूसरी परंपराओं में नौ रातें शक्ति के नौ रूपों को दर्शाती हैं और हर रात भक्त में अलग-अलग ऊर्जा को जगाने के लिए समर्पित होती है। यह त्योहार मौसमी बदलाव के साथ भी जुड़ता है और ऐसी साधनाओं को बढ़ावा देता है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता और आध्यात्मिक एकाग्रता को मजबूत करते हैं। नवरात्रि को एक ही कहानी तक सीमित करना मतलब इसकी व्यापकता को खो देना है ,यह तो धर्म और अधर्म, प्रकाश और अंधकार, ऊर्जा और जड़ता के संतुलन का उत्सव है।
मिथक नंबर 3-
एक आम गलतफहमी यह है, कि नवरात्रि के व्रत और अनुष्ठान मुख्य रूप से महिलाओं के लिए हैं और पुरुषों की इसमें कम भूमिका होती है। यह मिथक शायद इसलिए फैला हो, क्योंकि कई अनुष्ठानों में स्त्री शक्ति पर जोर दिया जाता है, जैसे कि कन्या पूजा में छोटी लड़कियों को देवी का रूप मानकर पूजा जाता है।
लेकिन सच यह है, कि नवरात्रि में पुरुष और महिलाएं दोनों बराबर से भाग ले सकते हैं। देवी माहात्म्य जैसे शास्त्रों में सभी लिंगों के भक्तों को देवी की आराधना करने के लिए कहा गया है, क्योंकि वह सृष्टि की स्रोत हैं। संयम, पवित्रता और भक्ति के सिद्धांत सबके लिए समान रूप से लागू होते हैं। वास्तव में, इतिहास में राजा और योद्धा भी नवरात्रि के अनुष्ठान करते थे ताकि उन्हें मां दुर्गा का आशीर्वाद मिले और उनकी शक्ति तथा विजय में सहायता मिले। इसलिए नवरात्रि लिंग-भेद की नहीं बल्कि सार्वभौमिक है। यह शक्ति को पहचानने के बारे में है, जो शारीरिक रूप और लिंग से परे अस्तित्व रखती है।
मिथक नंबर 4-
बहुत से भक्त नवरात्रि के दौरान देवी की पूजा इस तरह करते हैं, जैसे वह कहीं बाहर रहती हों, एक दिव्य शक्ति जो उनसे अलग है। जबकि मूर्ति पूजा और अनुष्ठानों का अपना महत्व है, शास्त्र बार-बार जोर देते हैं, कि शक्ति बाहरी नहीं बल्कि हर जीव के अंदर निवास करती है।
देवी उपनिषद में उन्हें वर्णित किया गया है, “मैं ही अनेक रूपों में स्थित एकमात्र हूं।” इसका अर्थ यह है, कि देवी दूर नहीं हैं, बल्कि वह हमारी जीवन शक्ति हैं, हमारी प्राण शक्ति हैं। नवरात्रि एक निमंत्रण है, यह पहचानने के लिए कि दुर्गा के नौ रूप उन शक्तियों का प्रतीक हैं, जो पहले से ही हमारे अंदर मौजूद हैं, साहस, बुद्धि, पवित्रता, अनुशासन, करुणा और बहुत कुछ। नवरात्रि की आराधना केवल बाहरी भक्ति नहीं, बल्कि एक भीतरी यात्रा भी है इन सुप्त शक्तियों को जगाने के लिए।
मिथक नंबर 5-
एक और प्रचलित मिथक यह है, कि विस्तृत अनुष्ठान, सजावट और चढ़ावे से ही मां दुर्गा की कृपा मिल सकती है। जबकि अनुष्ठानों का प्रतीकात्मक महत्व है, शास्त्र इस बात पर जोर देते हैं, कि सच्ची भक्ति बाहरी कार्यों से नहीं बल्कि भीतरी गुणों से नापी जाती है।
भगवद्गीता में कहा गया है, “पत्रं पुष्पं फलं तोयम्” – एक पत्ता, एक फूल, एक फल या पानी भी अगर भक्ति के साथ चढ़ाया जाए, तो परमात्मा स्वीकार करते हैं। शक्ति वस्तु में नहीं बल्कि चढ़ावे के पीछे के भाव में होती है। नवरात्रि के अनुष्ठान मन को अनुशासित करने और हृदय को केंद्रित करने के लिए हैं, न कि यांत्रिक क्रियाएं बनने के लिए जिनमें कोई अर्थ न हो। देवी विचार की शुद्धता, निष्कपटता, विनम्रता और धर्म के साथ जीने के संकल्प से प्रसन्न होती हैं।
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नवरात्रि की असली शिक्षा क्या है?
नवरात्रि हिंदू परंपरा के सबसे गहरे त्योहारों में से एक है। यह केवल देवी की राक्षसों पर विजय का उत्सव नहीं मनाता, बल्कि प्रकाश की अंधकार पर, ज्ञान की अज्ञानता पर और आत्म-संयम की अव्यवस्था पर शाश्वत विजय को भी मनाता है। मिथक और गलतफहमियां भले ही इसके पालन के आसपास बढ़ गई हों, लेकिन नवरात्रि का सार कालातीत है- अपने अंदर की शक्ति को जगाना और उस दिव्य स्त्री शक्ति को पहचानना जो सृष्टि का पालन करती है।
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जब दीप जलते हैं और मंत्र रात भर गूंजते हैं, तो असली आराधना केवल मंदिरों और घरों में नहीं बल्कि उस भक्त के हृदय में होती है, जो सीखाती है, कि देवी को अपने अंदर और बाहर दोनों जगह देखे। नवरात्रि केवल नौ रातों के अनुष्ठान नहीं – यह नौ रातों का परिवर्तन है।