सर्दियों की वह अंधेरी रात थी। मैं अपने पुराने हवेली में अकेला था। बाहर तेज़ हवा चल रही थी और पेड़ों की टहनियां खिड़कियों से टकरा रही थीं। मैंने सोचा कि एक कप गरम चाय बना लूं।

रसोई में जाते ही मुझे लगा कि किसी ने मेरा नाम पुकारा। मैंने चारों ओर देखा, कोई नहीं था। शायद हवा की आवाज़ होगी, मैंने खुद को समझाया और चाय बनाने लगा।

अचानक, मेरे पीछे से फिर आवाज़ आई, "राहुल..." इस बार आवाज़ स्पष्ट थी। मेरे हाथ कांपने लगे। मैं धीरे से मुड़ा, कमरा खाली था।

चाय लेकर मैं अपने कमरे में लौटा। बिजली गुल हो गई थी। मोमबत्ती जलाकर मैं बिस्तर पर बैठ गया। तभी मेरे कानों में फुसफुसाहट सुनाई दी, "मैं वापस आ गया हूं..."

मेरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। यह आवाज़ मेरे भाई की थी, जो पांच साल पहले इसी हवेली में रहस्यमय तरीके से गायब हो गया था।

मोमबत्ती की लौ हिलने लगी और दीवार पर एक परछाई उभरी। मैंने देखा, मेरा भाई सामने खड़ा था, उसकी आंखें खाली थीं और चेहरे पर अजीब मुस्कान थी।

"तुमने मुझे क्यों छिपाया, राहुल?" उसने कहा और धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़ने लगा। मैं चीखना चाहता था, पर मेरी आवाज़ गले में ही अटक गई।

उसके ठंडे हाथ मेरे कंधे पर पड़े और फिर अंधेरा छा गया...

अगली सुबह, हवेली में एक और व्यक्ति रहस्यमय तरीके से गायब हो गया था।