सूरज डूबने के बाद से ही मोहन को लग रहा था कि कोई उसका पीछा कर रहा है।
जंगल का रास्ता सुनसान था, और उसकी बाइक की हेडलाइट सिर्फ कुछ मीटर तक ही रोशनी दे पा रही थी।
अचानक उसकी बाइक रुक गई। पेट्रोल खत्म हो चुका था। मोहन ने चारों ओर देखा - घना अंधेरा और पेड़ों की छायाएँ।
"कोई है?" उसने पूछा, जब पीछे से पत्तों की खड़खड़ाहट सुनाई दी।कोई जवाब नहीं आया, लेकिन आहट पास आती गई। मोहन के हाथ कांपने लगे। उसने मोबाइल निकाला, लेकिन नेटवर्क नहीं था।
तभी उसने देखा - सड़क के किनारे एक छोटा सा मंदिर था। वह वहां भागा और अंदर घुस गया। मंदिर में एक मोमबत्ती जल रही थी, जिसकी रोशनी में एक मूर्ति दिखाई दी।
मोहन ने राहत की सांस ली और मूर्ति के सामने झुका। जैसे ही उसने सिर उठाया, उसका सांस रुक गया। मूर्ति का चेहरा उसकी तरफ मुड़ चुका था।
"तुम्हें पता है, मैं तुम्हारा इंतज़ार कब से कर रहा हूँ?" मूर्ति के होंठ हिले। मंदिर के बाहर, मोहन की चीख जंगल की खामोशी में खो गई।