रात के एक बजे थे। सूनसान सड़क पर अकेला चलते हुए राहुल ने महसूस किया कि उसका फोन की बैटरी खत्म हो चुकी थी। अचानक बारिश शुरू हो गई। उसे एक पुराना मकान नज़र आया और वह शरण लेने के लिए उस मकान की ओर दौड़ पड़ा।
दरवाज़ा धक्का देते ही खुल गया। "कोई है?" उसने आवाज़ दी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अंदर एक मद्धिम लैंप जल रहा था, जैसे कोई उसका इंतज़ार कर रहा हो।राहुल बरामदे में बैठ गया।तभी उसने ऊपर से आती कदमों की आहट सुनी। "शायद कोई है," उसने सोचा।
"बेटा, यहाँ आओ," एक बुज़ुर्ग महिला की आवाज़ सुनाई दी। राहुल सीढ़ियों की ओर बढ़ा। ऊपर पहुंचकर उसने देखा कि एक कमरे से प्रकाश आ रहा था।
अंदर जाते ही उसका खून जम गया। एक बूढ़ी औरत कोने में बैठी थी, उसके चेहरे पर एक अजीब मुस्कान थी। उसके बगल में एक एलबम था जिसमें कई लोगों की तस्वीरें थीं। "मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी," बुढ़िया ने कहा।
राहुल ने एलबम की ओर देखा। हर तस्वीर के नीचे एक तारीख लिखी थी और सबपे लाल क्रॉस का निशान था। अचानक उसने आज की तारीख के साथ अपनी तस्वीर देखी। "तुम आखिरी हो," बुढ़िया ने कहा, और उसकी आँखें लाल हो गईं।
राहुल भागने के लिए मुड़ा, लेकिन दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया और तब उसे महसूस हुआ कि कमरे में उसके अलावा कोई भी नहीं था, ना बुढ़िया, ना एलबम—सिर्फ दीवार पर लटकी अनगिनत तस्वीरें और उनमें से हर एक में वही चेहरा था जो अब उसे घूर रहा था।